कुछ भी सोचते रहता हुँ. कभी-कभी ऐसा भी लगता है की "ऐसा सिर्फ मैं हीं सोचता हूँ" . गलत भी झेलने की शक्ति रहे तब हीं धीरज नाम का कोई महत्व है वरना 'अधीर' से हीं काम चलाओ । मिथिला,भारत और सनातन धर्म संस्कृति से विशेष स्नेह है । एक्चुअली कुछ करना चाहता हूँ खुद के साथ सबके लिये। और हमेशा ऐसा लगता है "एक दिन जरुर कुछ करूँगा "अपने टाइप का ।। कलम "टेढ़ा " है लिखावट गंदा है ।
Wednesday, March 29, 2017
मिथिलांचल में कीर्तन भजन की स्थिति
मेरे गाँव दाथ में पिछले 10 मार्च को रामकृष्ण नामधुन नवाह आरंभ हुआ।लगभग 10 हजार जनसँख्या मात्र उस पुवारीटोल का है जहाँ मैं रहता हूँ बांकी 7 टोल का है पूरा दाथ । ये नवाह लगभग 10 साल पहले प्रत्येक वर्ष आयोजित होता था ।और सारे ग्रामीण मिलकर तन मन धन से सहयोग कर के इस कार्यक्रम को आयोजित और संचालित करते थे । परन्तु जब उपरोक्त सभी सहयोग और एवं लोगो की दिलचस्पी कम हो गया तो ये कार्यक्रम 10 साल तक बंद रहा ।इस बार कुछ सक्रिय भजन कीर्तन अनुरागियों जैसे स्वयं मेरे पिताजी ,लखन जी दादा ,छितन जी ,संतोष जी ,विषुण नेता जी,हीरा फौजी और कुछ अन्य लोगों ने निश्चय किया की इस परम्परा को इस वर्ष पुनर्जिवित करना है ।ऐसा ही हुआ भी .परन्तु आज ये सभी लोग इस कार्यक्रम के सफल समाप्ति के लिये चिंतित हैं । कारण जानकर आप हैरान हो जाएंगे कारण है शेष ग्रामीणों की निष्क्रियता जो उन्हें कीर्तन स्थल ठाकुरवारी तक नही ले जा पाता है । फलस्वरूप उपरोक्त नेतृत्वकर्ताओं के दिनचर्या को देखिये ,मेरे पिताजी समेत सभी लोग लगभग पूरी रात जागते हैं ,दिन को 2 से 3 घंटे सोने के बाद दैनिक क्रिया और फिर 2 से 3 घंटे विभिन्न सामान्य घरेलु कार्य करते हैं।।पुनः उन्हें जल्दी ठाकुरवारी पहूचना है।। क्योंकि लड़कियां अब थक चुकी होंगी ।
सुबह से वही लोग तो कैसे भी समय को आगे बढा रही हैं ।और बार बार उसी साउंड सिस्टम से बोल रही हैं "अहाँ सब जल्दी आबियौ ,हम सब बड़ी काल स अहाँ सब के बजा रहल छी " ।अतः वहां भी जल्दी पहुंचना है ।ऐसा नही है की कीर्तन का समय सारणी बनाकर समब्न्धित लोगों को बताया नही गया है की इतने बजे से इतने बजे आपको यहाँ आकर कीर्तन ।पर कलियुग है सो जिस काम से लोगों को प्रत्यक्ष लाभ नही मिले वो काम बेकार ।दो दिन पूर्व अच्छा खासा बारिश हुआ था ,खेतों में पर्याप्त हाल (नमी) है अतः मेरे पिताजी समेत बहुत लोग करीब 10 बजे खेतों में मुंग बाउग (बोने) करने गये ,अभी तक वापस नही लौटे हैं ।लगभग 2 बज रहा है लडकियाँ आपस मे अदला बदली कर के सुबह 6 से लगी हुई हैं । इसी बीच आज ज्ञात हुआ की कोई मिलन सरकार हैं सहसराम (बिरौल)के मात्र 200 ₹ भाड़ा लेते हैं एकदिन कीर्तन करने को बहुत सारे गाँव जैसे नेउरी ,मझौरा आदि गाँव में जाते हैं कीर्तन करने के लिए भाड़ा पर ।खैर अब सोचता हूँ की कहीं ये कहानी उसी मिथिलांचल का तो नही है जिसे मोदलता ,स्नेहलता ,विद्यापति ,मधुप जी का धरती माना जाता है ।
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