Wednesday, July 26, 2017

"बाबाक संस्कार" -एक बार फिर से ..


पूरी कहानी को पढ़ेंगे तो आपको मनगढंत और काल्पनिक लगेगा हालांकि मुझे इससे कोई ऐतराज नहीं है इस प्रकार की कहानियां काल्पनिक कथाओं में हीं तो आज तक पढ़ा होगा आपने ,पर मेरा विश्वास करिये बाबा को अभी तक मुखाग्नि भी नहीं मिला है :-

गाँव के बाबा दो साल से मौत के लिए जंग लड़ रहे थे क्योंकि जिंदगी के लिए जँग किसके लिए लड़ते उनके परिजनों को उनकी जरूरत सालों पहले समाप्त हो चुका था ,आज अन्ततः जिन्दगी की जंग हार गए और खुद जीतकर इस समाज के वार्तमानिक परिपेक्ष्य पर और पशु समूह रूपी मुखड़ों के ऊपर अनगिनत तमाचे लगा कर गए ,उसको उसके वास्तविक औकात से परिचित करवा कर गए ।

 वो तो अधिक से अधिक चार-पाँच साल और अपने जीवन को जी सकते थे यदि उन्हें उचित देखभाल ,पारिवारिक स्नेह और दवा दारू मिलता ,पर उन्हें तो माध्यम बनना था समाज को उसके इस गंदी असलियत से परिचित करवाने का सो भगवान ने भी सहायता किया और आज सुबह अपने कष्टमय जीवन से मुक्ति प्रदान कर दिये बाबा को और बाबा सिधार गए ।

अब आप जब उस सड़क से निकलेंगे तो सड़क के किनारे उनके उस शमशान नुमा दरवाजे पर बाबा के अधढ़के शरीर के लिपटे हुए कपडों में से गुह्य अंग नहीं दिखेंगे ,उनके सूजे हुए सर्वांग शरीर नहीं दिखेंगे ,उनके हृदय विदीर्ण करने वाला कराहने की आवाज नहीं सुनेंगे ,उनके 'पानी माँगने' की शर्मनाक स्थिति से दो चार नहीं होना पड़ेगा,रेअर्ली उनके पास खड़ी रहने वाली औरतों का समूह नहीं देखेंगे जो उनके हाल को देखकर उनके कलामी बेटों को 'आशीर्वाद' देती रहती थी  । उनको देखकर आपका में से कुछ लोगों का खून खौल के जो थोड़ा सा कम हो जाता था वो खून अब नहीं जलेगा और इसीलिये आपके शरीर से खून की मात्रा कम भी नहीं होगा क्योंकि अब बाबा नहीं रहे । वो   जो आप उनके हाल को देखकर अत्यंत दुःखी हो जाते थे आप का ये दुख उनसे नहीं देखा जाता था और इसीलिए वो देह त्याग दिए ।

3-4 साल पहले उनकी जीवन संगिनी उनका साथ छोड़ चल बसी लगभग इसी गति को उन्होंने ने भी प्राप्त किया था ,लगभग इसलिए क्योंकि उनके लिये बाबा थे । बाबा बड़े कर्मठ थे आज से दो साल पूर्व तक जब वो चलने-फिरने में सक्षम थे तो खाना भी बना लेते थे वहीं कोई 80 साल उम्र होगा उनका । पर जब वो खाना बनाने लायक नहीं बचे तो गाँव के एक जागरूक व्यक्ति ने महीनों उनको खाना पीना का व्यवस्था किया । बीच-बीच में कई बार जब कुछ लोगों से हालात बर्दाश्त नहीं होता था तो अपने खर्चा से बाबा का इलाज भी करवाए पर बाबा ठहरे बाबा ,सो थोड़ा सा भी उठ के खड़ा होने लायक बनने पर बाबा सीधे चल पड़ते थे मेरे घर के पीछे वाले बारी झारी की देखने अपने बटाईदार को उचित निर्देश देने ,अपने गाछी बिरछी में पेड़ों के संख्या गिनने कहीं किसी पेड़ की संख्या कम तो नहीं है ,किसी पतखरनी ने नव गोछली में से टुन्नी तो नहीं तोड़े आदि आदि जानने को । पर काश कोई बारी झारी , कलम-गाछी उनके काम आ पाता । पर हाँ वो पेड़ जिनका एक टुटा हुआ डाली बाबा को विचलित कर देता था आज आखिरी समय में उनके काम आएगा उनके दाह संस्कार में ।

बांकी वो सारे जमीन जायदाद ,कलम गाछी बाबा के उन्हीं कलामी चारों बेटों का उसी बाप का दिया हुआ सम्पति है जिस बाप को वो जीवन के सबसे कठिन परिस्थितियों में एक वक्त का समुचित खाना नहीं खिला पाए । वो कभी उस उस बाप का इलाज नहीं करवा पाए जिस बाप नें अपना पेट काट कर उन्हें उस स्तर पर पहुंचाया जिस स्टैंडर्ड में बाबा उनके लिए फिट नही बैठ रहे थे ।

आप को लग रहा होगा कि बाबा के सारे बेटे कोई जिन्दगी काटने वाला जॉब कर रहे होंगे और उस जिंदगी काटने वाले जीवनयापन में से इतना नहीं बचा पाते होंगे कि बाबा के लिए कुछ व्यवस्था कर पाते ,वो ऐसे झुग्गियों में रहते होंगे जहाँ वो बाबा को एडजस्ट नहीं कर सकते थे । जरा रुकिये क्या सोचे जा रहे हैं ? इससे पहले कि आप कुछ और सोच ले मैं बता दूं  की बाबा के सारे बेटे गवरमेंट जॉब करते हैं ,सभी लगभग बीसीयों साल से फुल फैमिली शहरों में रहते हैं  सिवाय एक छोटी बहु के ,और सरकारी नौकरी के नाम पर कोई के नाम पर कोई चपरासी गिरी नहीं करते हैं सभी स्तर के पदाधिकारी हैं कोई रेलवे के के सिग्नल सेक्शन में सीनियर इंजीनियर हैं तो कोई भूमि विभाग के बड़े अभियंता है एक किसी निजी क्षेत्र की कम्पनी में बहुत बड़े पदाधिकारी है ।

उनके कुछ बेटा बेटियां विदेशों में भी पढ़ते हैं । शहर में इस कदर अभ्यस्त हो गए हैं कि उनके बेटों की शादियाँ भी वहीं होते हैं गांव से कोई सपंर्क नहीं । हाँ पर कभी कभार साल में एकाध बार अपने निजी गाड़ी से गाँव आते हैं ,गाँव के पैतृक संपत्ति के बारे में अधितर लोगों का सोचना होता है कि अगर समय समय पर उसका देखभाल नहीं किया जाए तो फलां आदमी हड़प सकता है वो भी शायद कुछ इसी प्रकार के सोच के संग आते होंगे । पर कभी तीसरे दिन गाँव मे नहीं देखा उनको । खैर अब पूरे कहानी को पढ़ कर आप सोच रहे होंगे कि कुछ नहीं किया इन्होंने अपने माँ बाप के लिए ,आप गलत सोच रहे हैं माँ के लिए भी पूरे परम्पराओं के संग श्राद्ध कर्म किया था इन्होंने ने पंडीजी की खूब दक्षिणा दिए खूब भोज भात भी किये जिसके लिए खूब जयजयकार हुआ था इनका ।

अब पिताजी का भी करेंगे पूरे तत्परता के सँग पिताजी के दाह संस्कार होगा ,हो सकता है अधिकतर पुत्रजन फ्लाइट से गाँव आएं । पूरे विधि विधान के सँग बाबा का श्राद्ध होगा ताँबा और पीतल के बड़े बड़े बर्तन पंडीजी को दान दिया जाएगा , खूब बड़ा भोज होगा ,'हस्ति और नाम' के हिसाब से रसगुल्ला का जयवारी भोज भी कर सकते हैं ,गाँव को कम से कम तीन दिन तो खिलाएंगे हीं खूब जयजयकार होगा बाबा के श्राद्ध में इतने ब्राह्मण खाएंगे तो बाबा के आत्मा को भी पूरी शांति मिलेगी ही बाबा स्वर्ग को जाएंगे । और क्या चाहिए था बाबा को अपने उस बेटों से जिनके पढ़ाई का खर्चा कई बार उन्होंने ने घर के चूल्हे को ठंढा रख कर किया था ।

(उपरोक्त कहानी किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर नहीं लिखा गया है, यदि यह कहानी किसी व्यक्ति से मिलता जुलता है तो यह संयोग है। कहानी पूरे समाज की सच्चाई को प्रदर्शित करने हेतु लिखा गया है। कहानी में समाज के वर्तमान स्थिति और कुछ आवश्यक काल्पनिकता को शामिल किया गया है)

बाबा की जय हो !!
उनके बेटों की जय-जयकार हो !!

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