जिम्मेदार कौन शासन या मानव
हत्या किसी का हो चाहे दरभंगा के मनोज चौधरी का चाहे मधुबनी के नैंसी झा का या फिर गुड़गांव में प्रद्युम्न ठाकुर का, हत्यारा कोई हो, घटना हमारे देश के किसी हिस्से का हो पर मुझे पता नहीं क्यों हर बार ऐसा लगता है की हर हत्या-बलात्कार के साथ जनसमूह का ध्यानाकर्षण उस प्रत्यक्ष समस्या के तरफ नहीं जा रहा जो वास्तव में इन घटनाओं का कारक है । जो है गिरता हुआ मानवता,मनुष्यता और पशुता में बढ़ती समानता,एक दुसरे के प्रति संवेदनहीनता। हर बार जिस शासन-प्रशासन,सत्ताधीश को एक झटके में उस हत्या का जिम्मेदार मान लेते हैं क्या वहीं सही है ? क्या इन अमानवीय कृत्यों को सुधारना किसी शासन व्यवस्था सत्ताधीश से सम्भव भी है ?
बलात्कार कल भी हुआ आज भी होगा कल भी होगा ,हत्याएँ कल भी हुआ आज भी होगा कल भी होगा पर क्या इन हत्याओं बलात्कारों को रोकना मात्र इस शासन-प्रशासन व्यवस्था से सम्भव है ?
जब आप पुर्ण व्यहारिक हो के सोचेंगे तो आपको आभास होगा की वास्तव में इस शासन-प्रशासन व्यवस्था की आवश्यकता तब हीं पड़ता है जब कोई मानव पशुता दिखाता है।
अब सवाल है कि हम शासन व्यवस्था पर तो एक झटके में दोष मढ़ देते हैं पर कभी ये सोचते हैं कि इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने की नौबत क्यों आया और वो नौबत ही नहीं आए इसके लिए कितने लोगों ने आवाज बुलंद किया है ?
सभी समस्याओं का जड़ मनुष्य में मनुष्यता का पतन और पशुता का वर्धन है। इन्हीं अमानवीय अवगुणों के कारण हमें किसी तथाकथित शासन -व्यवस्था की आवश्यकता होती है ।
धरातल पर लौटिये हत्या मनोज चौधरी का भी हुआ पेट्रोल डाल कर जिन्दा जला कर ,हत्या नैंसी झा का भी हुआ ,हत्या एकाध दिन पूर्व प्रद्युम्न का भी हुआ ।
एक-एक हत्याकांड को देखिए क्या किसी घटना में आप पुलिसिया-व्यवस्था,न्यायिक व्यवस्था, सत्ताधीश के कार्रवाई से संतुष्ट हैं ?
मनोज चौधरी हत्याकांड का न्यायालय में दलालों के द्वारा लीपापोती हो चुका है ,नैंसी हत्याकांड में पुलिस जाँच में सब कुछ उतना हीं स्पष्ट है जितना आरुषि और जेसिका हत्याकांड में स्पष्ट हुआ , प्रद्युम्न हत्याकांड के लिए लोग हरियाणा सरकार,स्कूल प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। निश्चय हीं लोगों का गुस्सा न्यायव्यवस्था के प्रति ,पुलिस के कारवाई के प्रति,हरियाणा सरकार के प्रति या फिर स्कूल प्रशासन के प्रति जायज और स्वाभाविक है लेकिन इन सभी घटनाओं के प्रति इस व्यवस्था की आवश्यकता तब पड़ी है जन कोई मानव एक मानव के लिए दानव बन गया यहीं सच्चाई है सम्पुर्ण सच्चाई।
अब सभी हत्याकांड में एक मिनट के लिए शासन-व्यवस्था के अभी तक हुए कार्रवाई जो सही है या गलत को भुल जाइये और ये सोचिए -
मनोज चौधरी को दिन दहाड़े पेट्रोल डालकर जिन्दा जलाने वालों के मन में कभी ये विचार आया कि मैं जिसे जिंदा जला रहा हुँ वो भी इसी हाड़ मांस के शरीर का मालिक है , आखिर एक मनुष्य किस हृदय से किसी मनुष्य को यूँ पेट्रोल डालकर जिंदा जला सकता है । आखिर किसी मनुष्य के दिल में एक मनुष्य के लिए इतनी क्रूरता आ कहाँ से जाता है ? क्या ये भी मानव हीं हैं ? क्या हर दुकान पर एक पुलिस का ड्यूटी लगाना सम्भव है ?
नैंसी झा की हत्या किसने किया ये आजतक स्पष्ट नहीं हुआ जिसके लिए हम शासन व्यवस्था को दोषी ठहरा रहे हैं ठहराना भी चाहिए लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि जिन हाथों ने एक 12 साल के मासूम बच्ची की इतनी निर्ममता पूर्वक हत्या कर दिया उन हाथों में इतनी क्रूरता कहाँ से आ जाता है एक मासुम बच्ची के लिए ? क्या हर मासुम के सुरक्षा के लिए एक पुलिस को बहाल कर पाना सम्भव है ?
गुड़गांव में 8 वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर जिसकी हत्या रेयान इंटरनेशनल स्कुल के ड्राइवर ने कुकृत्य में असफल होंने पर कर दिया क्या ऐसे लोग मानवता नाम मात्र के लिए खतरा नहीं है ,उस व्यभिचारी के मन में ये एक बार भी क्यों नहीं आया कि जिस बच्चे की हत्या वो इतना क्रूरता से करने जा रहा है वास्तव में उसे उस क्रुरता का आभास भी नहीं है वो इस बात से परिचित भी नहीं है कि दुनिया में इस प्रकार के लोग भी होते हैं और इस दुनिया की कुंठित मानसिकता इस हद तक भी जा सकता है। आखिर कोई व्यक्ति इतना बड़ा दानव कैसे बन सकता है कि एक 8 साल के अबोध बच्चे की हत्या इस प्रकार से करता है कि उसके गर्दन ,कान ,सांस नली ,और ग्राह नली तक को काट कर उस बच्चे को इस रूप में ला देता है कि देखने मात्र से किसी का रुह काँप जाए ।
वास्तव में समाज को आवश्यकता है एक मानसिक क्रांति की जिसमें मनुष्य को जीवन का मोल का आभास हो ,जिसमें व्यवहारिक जीवन में एक दूसरे के प्रति प्रेम केे महत्व का आभास हो, जिसमें बच्चों को समाज का ,देश का भविष्य होने का आभास हो ना की अपनी कुंठित मानसिकता के लिए सॉफ्ट टारगेट का । यदि ऐसा नहीं होता है तो आप ऐसा उम्मीद भी नही करिये की हर जगह की सुरक्षा हमारा शिथिल शासन-व्यवस्था सुनिश्चित कर लेगा ये ढकोसला लगता है ।
हत्या किसी का हो चाहे दरभंगा के मनोज चौधरी का चाहे मधुबनी के नैंसी झा का या फिर गुड़गांव में प्रद्युम्न ठाकुर का, हत्यारा कोई हो, घटना हमारे देश के किसी हिस्से का हो पर मुझे पता नहीं क्यों हर बार ऐसा लगता है की हर हत्या-बलात्कार के साथ जनसमूह का ध्यानाकर्षण उस प्रत्यक्ष समस्या के तरफ नहीं जा रहा जो वास्तव में इन घटनाओं का कारक है । जो है गिरता हुआ मानवता,मनुष्यता और पशुता में बढ़ती समानता,एक दुसरे के प्रति संवेदनहीनता। हर बार जिस शासन-प्रशासन,सत्ताधीश को एक झटके में उस हत्या का जिम्मेदार मान लेते हैं क्या वहीं सही है ? क्या इन अमानवीय कृत्यों को सुधारना किसी शासन व्यवस्था सत्ताधीश से सम्भव भी है ?
बलात्कार कल भी हुआ आज भी होगा कल भी होगा ,हत्याएँ कल भी हुआ आज भी होगा कल भी होगा पर क्या इन हत्याओं बलात्कारों को रोकना मात्र इस शासन-प्रशासन व्यवस्था से सम्भव है ?
जब आप पुर्ण व्यहारिक हो के सोचेंगे तो आपको आभास होगा की वास्तव में इस शासन-प्रशासन व्यवस्था की आवश्यकता तब हीं पड़ता है जब कोई मानव पशुता दिखाता है।
अब सवाल है कि हम शासन व्यवस्था पर तो एक झटके में दोष मढ़ देते हैं पर कभी ये सोचते हैं कि इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने की नौबत क्यों आया और वो नौबत ही नहीं आए इसके लिए कितने लोगों ने आवाज बुलंद किया है ?
सभी समस्याओं का जड़ मनुष्य में मनुष्यता का पतन और पशुता का वर्धन है। इन्हीं अमानवीय अवगुणों के कारण हमें किसी तथाकथित शासन -व्यवस्था की आवश्यकता होती है ।
धरातल पर लौटिये हत्या मनोज चौधरी का भी हुआ पेट्रोल डाल कर जिन्दा जला कर ,हत्या नैंसी झा का भी हुआ ,हत्या एकाध दिन पूर्व प्रद्युम्न का भी हुआ ।
एक-एक हत्याकांड को देखिए क्या किसी घटना में आप पुलिसिया-व्यवस्था,न्यायिक व्यवस्था, सत्ताधीश के कार्रवाई से संतुष्ट हैं ?
मनोज चौधरी हत्याकांड का न्यायालय में दलालों के द्वारा लीपापोती हो चुका है ,नैंसी हत्याकांड में पुलिस जाँच में सब कुछ उतना हीं स्पष्ट है जितना आरुषि और जेसिका हत्याकांड में स्पष्ट हुआ , प्रद्युम्न हत्याकांड के लिए लोग हरियाणा सरकार,स्कूल प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। निश्चय हीं लोगों का गुस्सा न्यायव्यवस्था के प्रति ,पुलिस के कारवाई के प्रति,हरियाणा सरकार के प्रति या फिर स्कूल प्रशासन के प्रति जायज और स्वाभाविक है लेकिन इन सभी घटनाओं के प्रति इस व्यवस्था की आवश्यकता तब पड़ी है जन कोई मानव एक मानव के लिए दानव बन गया यहीं सच्चाई है सम्पुर्ण सच्चाई।
अब सभी हत्याकांड में एक मिनट के लिए शासन-व्यवस्था के अभी तक हुए कार्रवाई जो सही है या गलत को भुल जाइये और ये सोचिए -
मनोज चौधरी को दिन दहाड़े पेट्रोल डालकर जिन्दा जलाने वालों के मन में कभी ये विचार आया कि मैं जिसे जिंदा जला रहा हुँ वो भी इसी हाड़ मांस के शरीर का मालिक है , आखिर एक मनुष्य किस हृदय से किसी मनुष्य को यूँ पेट्रोल डालकर जिंदा जला सकता है । आखिर किसी मनुष्य के दिल में एक मनुष्य के लिए इतनी क्रूरता आ कहाँ से जाता है ? क्या ये भी मानव हीं हैं ? क्या हर दुकान पर एक पुलिस का ड्यूटी लगाना सम्भव है ?
नैंसी झा की हत्या किसने किया ये आजतक स्पष्ट नहीं हुआ जिसके लिए हम शासन व्यवस्था को दोषी ठहरा रहे हैं ठहराना भी चाहिए लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि जिन हाथों ने एक 12 साल के मासूम बच्ची की इतनी निर्ममता पूर्वक हत्या कर दिया उन हाथों में इतनी क्रूरता कहाँ से आ जाता है एक मासुम बच्ची के लिए ? क्या हर मासुम के सुरक्षा के लिए एक पुलिस को बहाल कर पाना सम्भव है ?
गुड़गांव में 8 वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर जिसकी हत्या रेयान इंटरनेशनल स्कुल के ड्राइवर ने कुकृत्य में असफल होंने पर कर दिया क्या ऐसे लोग मानवता नाम मात्र के लिए खतरा नहीं है ,उस व्यभिचारी के मन में ये एक बार भी क्यों नहीं आया कि जिस बच्चे की हत्या वो इतना क्रूरता से करने जा रहा है वास्तव में उसे उस क्रुरता का आभास भी नहीं है वो इस बात से परिचित भी नहीं है कि दुनिया में इस प्रकार के लोग भी होते हैं और इस दुनिया की कुंठित मानसिकता इस हद तक भी जा सकता है। आखिर कोई व्यक्ति इतना बड़ा दानव कैसे बन सकता है कि एक 8 साल के अबोध बच्चे की हत्या इस प्रकार से करता है कि उसके गर्दन ,कान ,सांस नली ,और ग्राह नली तक को काट कर उस बच्चे को इस रूप में ला देता है कि देखने मात्र से किसी का रुह काँप जाए ।
वास्तव में समाज को आवश्यकता है एक मानसिक क्रांति की जिसमें मनुष्य को जीवन का मोल का आभास हो ,जिसमें व्यवहारिक जीवन में एक दूसरे के प्रति प्रेम केे महत्व का आभास हो, जिसमें बच्चों को समाज का ,देश का भविष्य होने का आभास हो ना की अपनी कुंठित मानसिकता के लिए सॉफ्ट टारगेट का । यदि ऐसा नहीं होता है तो आप ऐसा उम्मीद भी नही करिये की हर जगह की सुरक्षा हमारा शिथिल शासन-व्यवस्था सुनिश्चित कर लेगा ये ढकोसला लगता है ।
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