कुत्सित मानसिकता को दुर करना किसी सरकार-प्रशासन के बस की बात नहीं है(बलात्कारों पर भी राजनीति करनी हो तो अलग बात है।) इनके कार्यक्षेत्र का भी एक सीमीत दायरा होता है। इनके भी कुछ सीमाएं होते हैं मसलन हर स्थान पर पुलिस खड़ा नहीं रह सकता सरकारें सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती।
परन्तु यदि दोषी पकड़ से बाहर है या कोई उसे बचाने की कोशिश कर रहा है तो ये सत्ता और प्रशासन की असफलता है।यद्यपि मैंने इन बड़े-बड़े घटनाओं पर विचार प्रकट करना छोड़ दिया है। क्योंकि ऐसा करना मुझे बेहद औपचारिक और ढकोसला लगने लगा है। इसीलिए अब देश स्तर के बड़े बड़े घटनाओं और कोई राय नहीं देता। लेकिन अबकी बार रहा नहीं गया। जहाँ तहाँ देख रहा हूँ लोग बिना सिर पैर की बातें कर के सरकारों को बलात्कार का जिम्मेदार ठहराये जा रहे हैं। खैर चन्द शब्दों के समहू का सहारा लेकर और चुँकि फेसबुक इत्यादि सोशल मीडिया पर सिवाय कुछ समय और नाममात्र खर्च के और कुछ लगता नहीं अतः ऐसा करना आसान है।
यद्यपि मैने ऊपर हीं लिख दिया है कि सरकार और प्रशासन का फेल्योर तब माना जाना चाहिए जब दोषी पुलिस के हाथ से बाहर हो या सत्ता के बल पर किसी अपराधी को बचाने षड्यंत्र रचा जा रहा हो। अतः आप आश्वस्त रहें किसी को डिफेंड करने जैसी कोई बात नहीं है।
मैं तो कहना चाहता हुँ इस समाज के लोगों से आप से, खुद, से सबों से की सिर्फ सैद्धांतिक विचारों के बल से व्यक्ति या व्यक्तियों का समुह जिसे समाज कहते हैं अस्थायी या मौसमी रूप से कितना भी आंदोलित-उद्वेलित हो जाए बलात्कार नहीं रुकनेवाला है। यदि ऐसा संभव होता तो निर्भया कांड के बाद देश में कोई बलात्कार नहीं होता।
बलात्कार एक सामाजिक बुराई है जो किसी घृणित हवसी और समाज के कलंक के द्वारा किया जाता है। और वो व्यक्ति दुसरे ग्रह से नहीं आता। वो आपके हीं बगल का जो सकता है, आपका पड़ोसी हो सकता है, आपके घर का हो सकता है, आपका सम्बन्धी हो सकता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि सभी व्यक्ति गलत को गलत कहते हैं, यानी हर व्यक्ति बलात्कार को घृणित अपराध मानता है और ऐसा करने वाले के लिए फाँसी मांगता है, चोरी-डकैती को गलत मानते हैं और ऐसे लोगों को समाज में मनुष्य के नाम पर एक धब्बा मानते हैं।
अब जबकि सभी इतने आदर्शवादी विचार के पोषक हैं तो प्रतिदिन होने वाला बलात्कार और चोरी-डकैती कर के कौन चला जाता है! कहीं एलियन तो नहीं आ कर इन घटनाओं को अंजाम देकर वापस उड़नतश्तरी पर अपने ग्रह को लौट जाते?
नहीं महाशय ऐसी कोई बात नहीं है वो वहीं होता है आपके बीच का। वह भी इन चीजों का व्यापक आलोचना करने वाला भी हो सकता है। अतः चिंतन इस बात पर करने की आवश्यकता है कि यदि कड़वा सच यहीं है कि वो बलात्कारी भी इसी समाज का हिस्सा रहता है तो ऐसा हो क्यों रहा है? वो इससे पहले तो बड़ा अच्छा और चरित्रवान व्यक्ति प्रतीत हो रहा था!
समाज को व्यवहारिक रूप से इन समस्याओं का समाधान ढूँढना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से यदि ऐसा संभव हो पाता तो लोगों के सोशल मीडिया पर लिखे गए इतने ज्ञानवर्धक और आक्रोश से भरे सैद्धांतिक पोस्टों के बाद शायद कोई बालात्कार नहीं होता!
लोगों के जीवनशैली में व्यापक बदलाव हुआ है। इंरनेट के माध्य से इच्छित परिणाम पाने के अनेक उपाय हैं। जहाँ चन्द सेकेंड में व्यक्ति हर वो चीज देख सुन पढ़ सकता है जो लोगों के नजर में बलात्कार का एक कारक माना जाता है। आज के तारीख में लोग समाज में आधुनिकता के बैनर तले इन चीजों को बेहद सहजता से लेते हैं। ये निश्चित रूप से सामाजिक परिवर्तन का द्योतक है।
परंतु हर परिवर्तन अपने साथ कुछ बुराइयां लेकर आती है। जैसे लोगों के जीवनशैली में सामान्य रूप से परिवर्तन समाहित हो जाता है उसी प्रकार लोग उसमें समाहित बुराइयों के समाधान पर कभी ध्यान ही नहीं देते हैं।
यदि पुराने समय में हमारे पुर्वज अपने बच्चों का वैवाहिक जीवन कम उम्र में शुरू करवा देते थे तो ये उनका परिस्थितिजन्य निर्णय हुआ करता था। ये शायद उनके दूरदर्षिता का प्रतिफल हुआ करता था।
यद्यपि वार्तमानिक परिपेक्ष्य में यह सम्भव नहीं हो सकता है और यहाँ तक कि इस विषय पर बात करने वाले को सैद्धान्तिक रूप से प्रगाढ़ विद्वजन मूर्ख तक साबित कर देंगे। परंतु यदि वास्तव में कुछ बदलाव चाहते हैं इन घटनाओं में तो इस समाज प्रबुद्धजन को व्यवहारिक रूप से सोचकर कुछ सार्वभौमिक निर्णय लेना पड़ेगा। जो समान रूप से हर समाज के हर व्यक्ति के लिए सहजता से स्वीकार्य हो।
यदि ऐसा नहीं हो सकता तो बलात्कार शब्द को समाज में हर व्यक्ति को सहजता से सुनने पढ़ने झेलने के लिए तैयार होना पड़ेगा। और हाँ इन सैद्धांतिक बातों से बलात्कारों में कोई गिरावट नहीं आने वाला है। लिख लें ये आज भी हुआ कल भी हुआ था और कल भी होगा। किसी सरकार प्रशासन के बस की बात नहीं है इसको रोक लेना।
(उपरोक्त लिखा गया सभी बातें मेरा नितांत व्यक्तिगत विचार है जिसे माननीय को कोई व्यक्ति बाध्य नहीं है अर्थात मानना है तो मानें नहीं मानना है तो सीताराम सीताराम करें)
जी सियाराम
जय मिथिला
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